जलियावाला बाग एक इतिहास की कहानी | Jaliyanwala Bagh Hatyakand real History

जलियावाला बाग एक इतिहास की कहानी | Jaliyanwala Bagh Hatyakand real History

Manish Dhadholi

54 года назад

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13 अप्रैल 1919 का दिन भारत के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। उस दिन जलियांवाला बाग, अमृतसर, एक शांतिपूर्ण जनसभा का गवाह बना, जोकि स्वतंत्रता की इच्छा और ब्रिटिश राज के प्रति बढ़ते असंतोष का प्रतीक था।
ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों की नाराजगी बढ़ रही थी। रॉलेट एक्ट, जिसे भारतीयों की आवाज को दबाने के लिए लाया गया था, ने लोगों के मन में गहरी बेचैनी पैदा की। पंजाब के अलग अलग शहरों में प्रदर्शन और जनसभाएँ आयोजित की जाने लगीं। 13 अप्रैल को बैसाखी का त्योहार था, और  देश के हर जगह से लोग मेला देखने आये हुए थे! जलियांवाला बाग में भीड़ इकट्ठा देखकर लोग उस दिन जलियांवाला बाग में हज़ारों की संख्या में इकट्ठा हुए। रॉलेट एक्ट के विरोध में जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण सभा का आयोजन किया जा रहा था ! और उस समय जनरल डायर, जोकि पंजाब का सैन्य प्रमुख था, ने यह सूचना प्राप्त की कि लोग बाग में एकत्रित हो रहे हैं।
उसने बिना किसी चेतावनी के अपने सैनिकों के साथ बाग में प्रवेश किया। डायर ने फायरिंग का आदेश दिया, और गोलियों की बौछार ने भीड़ को तितर-बितर कर दिया।10 मिनट में 1650 राउंड फायर किए 
भागने का कोई रास्ता नहीं था
अंग्रेजों की गोली से बचने के लिए  लोग उसी बाग में मौजूद एक कुएँ में कूद गए थे। जिसमें अनेक निर्दोष और निहत्थे लोग मारे गए थे।  कुएं से 120 ded बॉडी bahar निकाली गई जिसमें 400 से अधिक व्यक्ति मरे और २००० से अधिक घायल हुए। इस नरसंहार ने पूरे देश में आक्रोश पैदा किया।
इस घटना ने न केवल भारतीयों के दिलों में गहरा सदमा पहुंचाया, बल्कि यह स्वतंत्रता संग्राम को तेज करने का कार्य भी किया। महात्मा गांधी, नेहरू, सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक निर्णायक मोड़ के रूप में देखा। जलियांवाला बाग का नरसंहार भारतीय जनता के लिए एक चेतना जागृत करने वाला क्षण बन गया। आज जलियांवाला बाग एक स्मारक के रूप में मौजूद है। यहाँ पर एक शहीद स्मारक, एक जल कुंड, और दीवारें हैं जो उस दिन की घटनाओं को याद दिलाती हैं। हर साल 13 अप्रैल को, लोग यहाँ आकर उन शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। जलियांवाला बाग की कहानी हमें यह सिखाती है कि संघर्ष और बलिदान की भावना कभी खत्म नहीं होती। यह स्थल आज भी एक प्रतीक है उस साहस और बलिदान का, जो भारतीयों ने अपने अधिकारों के लिए किया। यह हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता की कीमत कितनी बड़ी होती है और हमें हमेशा अपने अधिकारों के लिए जागरूक रहना चाहिए।


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